भगवान परशुराम जी
की आरती
कर्पूर गौरं करूणावतारं
संसार सारं भुजग्रेहन्द्र हारं
सदा वसन्तम् हृदयारविन्दे भवं भवामी सहितं नमामी ।
जय परशुराम देवा प्रभु जय परशुराम देवा |
भृगुकुल कमल दिवाकर जग करता सेवा ||
ब्रह्म वेश तेजस्वी हरी अवतारी |
प्रथ्वीभार उतारन , चतुर कला धारी ||
तिलक त्रिपुंड सुसोभित दिव्य जटा धारी |
गाल रुद्राक्षीकंठा , लागत छवि प्यारी ||
गौर शरीर पर भस्मी , अनुपम मनहारी |
कर में परशुराम विराजत अथ - अभर्व हारी ||
सहसबाहु भुज खंडन , मंडन सुख करी |
प्रभु नैष्ठिक- ब्रहमचारी - मुनिजन अविकारी ||
विजय राज्य कश्यप को , बहु विधि दान कियो |
अस्वमेघ योजना कर , पावन नाम कियो ||
गिरी महेंद्र में शोभित , नाना रूप धरो |
जो श्रधा से ध्याता , उनके काज सरे ||
भृगुकुल राम की आरती , जो कोई नर गावे |
सुन्दर सुखद निरामय , निश्चय पद पावे ||
जय परशुराम देवा प्रभु जय परशुराम देवा |
भृगुकुल कमल दिवाकर जग करता सेवा ||
जय परशुराम देवा प्रभु जय परशुराम देवा | |